Madhu varma

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लेखनी कविता -दीपक पर पतंग -महादेवी वर्मा

दीपक पर पतंग -महादेवी वर्मा 

दीपक में पतंग जलता क्यों?
प्रिय की आभा में जीता फिर
 दूरी का अभिनय करता क्यों
 पागल रे पतंग जलता क्यों

 उजियाला जिसका दीपक है
 मुझमें भी है वह चिनगारी
 अपनी ज्वाला देख अन्य की
 ज्वाला पर इतनी ममता क्यों

 गिरता कब दीपक दीपक में
 तारक में तारक कब घुलता
 तेरा ही उन्माद शिखा में
 जलता है फिर आकुलता क्यों

 पाता जड़ जीवन जीवन से
 तम दिन में मिल दिन हो जाता
 पर जीवन के आभा के कण
 एक सदा भ्रम मे फिरता क्यों

 जो तू जलने को पागल हो
 आँसू का जल स्नेह बनेगा
 धूमहीन निस्पंद जगत में
 जल-बुझ, यह क्रंदन करता क्यों
 दीपक में पतंग जलता क्यों? 

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